डरते हो तुम इश्क़ से,
इश्क़ में विसाल-ऐ-यार से।
क्यों?
इसीलिए ना की कहीं जुदाई का ग़म ना हो?
या फिर डरते हो शैदाई होने से?
क्या खुद को खोने से डरते हो?
या डरते हो की कहीं खुद की खुद से ही पहचान न हो जाये?
मेरी मानो और कभी मुहोब्बत करो तो इतनी करो
की टूट कर करो
बिखर जाओ इस क़दर
की तुम्हारा वजूद मिल जाये मेहबूब में
तुम तुम ही रहो, पर "बस तुम" न रहो
फ़िर जो रंग चढ़ेगा तुम पर...
फिर जो दोबारा बनोगे उस पिघले हुए वजूद से
तो देखो क्या ख़ूब रोशन वजूद होगा तुम्हारा।
माहताब सा.... नहीं , नहीं... आफ़ताब सा !
फिर वो मेहबूब पास न हो कर भी तुम में ही होगा
हमेशा... तुम्हारे वजूद में जज़्ब !
इश्क़ में विसाल-ऐ-यार से।
क्यों?
इसीलिए ना की कहीं जुदाई का ग़म ना हो?
या फिर डरते हो शैदाई होने से?
क्या खुद को खोने से डरते हो?
या डरते हो की कहीं खुद की खुद से ही पहचान न हो जाये?
मेरी मानो और कभी मुहोब्बत करो तो इतनी करो
की टूट कर करो
बिखर जाओ इस क़दर
की तुम्हारा वजूद मिल जाये मेहबूब में
तुम तुम ही रहो, पर "बस तुम" न रहो
फ़िर जो रंग चढ़ेगा तुम पर...
फिर जो दोबारा बनोगे उस पिघले हुए वजूद से
तो देखो क्या ख़ूब रोशन वजूद होगा तुम्हारा।
माहताब सा.... नहीं , नहीं... आफ़ताब सा !
फिर वो मेहबूब पास न हो कर भी तुम में ही होगा
हमेशा... तुम्हारे वजूद में जज़्ब !