Wednesday, August 12, 2020

Darte ho tum?

डरते हो तुम इश्क़ से,
इश्क़  में विसाल-ऐ-यार से।
क्यों?
इसीलिए ना की कहीं जुदाई का ग़म ना हो?
या फिर डरते हो शैदाई होने से?
क्या खुद को खोने से डरते हो?
या डरते हो की कहीं खुद की खुद से ही पहचान न हो जाये?

मेरी मानो और कभी मुहोब्बत करो तो इतनी करो
की टूट कर करो
बिखर जाओ इस क़दर
की तुम्हारा वजूद मिल जाये मेहबूब में
तुम तुम ही रहो, पर "बस तुम" न रहो
फ़िर जो रंग  चढ़ेगा तुम पर...
फिर जो दोबारा बनोगे उस पिघले हुए वजूद से
तो देखो क्या ख़ूब रोशन वजूद होगा तुम्हारा। 
माहताब सा.... नहीं , नहीं... आफ़ताब सा !
फिर वो मेहबूब पास न हो कर भी तुम में ही होगा
हमेशा... तुम्हारे वजूद में जज़्ब !


"तुम्हें कैसे पता की वो तुमसे प्यार भी करता है?" "कब कहे थे उसने तुमसे वो अल्फ़ाज़ आख़िर बार?" जब कोई मुझसे ऐसा पूछता है ना, तो समझ नहीं आता की क्या जवाब दूं? दरअसल मुझे याद ही नहीं उसने मुझे आई लव यु आख़िर बार कब बोला। उसकी आदत में ही शुमार नहीं था कभी वो 3 लव्ज़ बोलना लेकिन इसका ये मतलब नहीं की उसने अपना प्यार इज़हार नहीं किया। वो तो वो अक्सर ही करता था, और आज भी करता है। हर समय, हर वक़्त मेरे लिए उठाये उसके हर कदम उसके प्यार का इज़हार करते रहे हैं। उसका मेरे लिए हर एक gesture, हर एक एक्शन, उसकी छोटी से छोटी हरकत चीख़ चीख़ के I Love You कहती है। बेहरे हैं वो लोग जिन्हें ये सुनाई नहीं देता। उसने तब भी I Love You कहा था जब मेरी बस यूँ ही बातों में कही हुई ख़्वाहिश को बिना बताये या जताए पूरा किया था उसने तब भी प्यार जताया था जब फ़क्र से मुझे अपने दोस्तों से मिलवाया था और तब भी जब मेरी बातों को बिना कहे समझ जाता था वो मुझसे इश्क़ का ही तो इकरार है जो उसने 2 साल से मुझसे कोई राब्ता नहीं रखा वो जो आज भी मेरी टोह नहीं लेता ना, वो अपनी मोहोब्बत का ही इज़हार करता है। हर दिन, हर पल तुम शायद इस दुनिया के तौर-तरीकों के हिसाब से मुझे पागल समझो तो समझ ही लो कमली मुझे, मुझे ऐतराज़ नहीं है। क्योंकि ये सिर्फ में जानती हूँ की उसका मुझे कोई ताल्लुक ना रखना भी किस तरह से उसका मुझसे प्यार करना है। ख़ैर चलो मान भी ले अगर एक बार को तुम्हारी दुनियादारी की बातें, चलो मान भी लें तर्क के लिए की उसको इश्क़ नहीं हमसे। ना करता हो, ना सही। पर बेइंतहा खुदगर्ज़ हूँ मैं मुझे इस बात से फ़र्क पड़ता है की मैं चाहती हूँ उसे टूट कर, उसकी रूह से बेहिसाब मुहोब्बत है मुझे और मेरे लिए ये एहम बात है वस्ल हो या न हो वो शायद मायने नहीं रखता मेरे लिए मेरे लिए मायने ये रखता है की मेरी क्या औकात है प्यार में क्या इस कदर इश्क़ किया है मैंने उससे की मुझमें वो समा गया है और मैं उसमें? लोग मुझे देखते हैं तो क्या मुझमें उसका अक्स भी झलकता है? क्या तुमको लगता है की मैं और निखर कर और अपने जैसी हो गयी हूँ? अगर इन सवालों का जवाब "हाँ" है तो बस अब और नहीं सफाई पेश करनी मुझे और न कोई दलील मुझे जो कहना था सो कह दिया अब तुम जानो और तुम्हारा काम। हमारी तरफ से अब जय सिया राम।।

Sunday, May 12, 2019

20th December 2017

अब बदन का दर्द पता नहीं चलता। ऐसा नहीं है की बदन थकता नहीं। शरीर आज भी उतना ही थकता है जितना पहले। अब बस वह दर्द जाता नहीं है न, या यूँ कहूँ की जा नहीं पता, तो वह धीरे धीरे अब मेरे शरीर का एक हिस्सा ही बन गया है. ऐसा लगता है जैसे मेरा शरीर ही ऐसा हो गया है। हाँ, जब कभी हमेशा से ज़्यादा थकान होती है और रोज़ से थोड़ा ज़्यादा बदन दर्द करता है तो वो अतिरिक्त दर्द खलता नहीं है। खलता है तो बस अभाव, तुम्हारे हाथों की उस तपिश का जिससे पहले मेरा बदन-दर्द छूमंतर हो जाता था। खलता है तो बस अभाव , तुम्हारे हाथों के स्पर्श का,  तुम्हारे पास होने का।

जब रोज़ से ज़्यादा दर्द होता है तो यही ख़लिश मुझे  आँख मूंदकर तुम्हारी यादों में जाने के लिए विवश कर देती है। और मैं जहाँ, जिस हालात में होती हूँ, बस आँख बंद कर याद करने लगती हूँ वह तुम्हारा पहला स्पर्श, वो पहली बार तुम्हारा मेरी पीठ दबाना। आह! कितनी गर्माहट दे गयी थी तुम्हारे हांथों से पहली बार की गयी  मालिश मुझे। पूरी पीठ हलकी गर्माहट में नहा गयी थी। उसी गर्माहट से, बदन को मिले आराम से मैं कैसी बेसुध सी हो गयी थी। फिर उस दिन की सारी  घटनाओं का क्रमवद्ध चलचित्र चलने लगता है मेरी बंद आँखों के पृष्ठ पर। उस दिन से ले कर इस पल के आँखें मूंदने तक सब देख लेती हूँ एक बार। और फिर उन्ही मुंदी हुई आँखों से एक आंसू गिर कर, गालों  पे लुढ़कता हुआ, होंठो तक पहुंच जाता  है।

नहीं रोक पाती हूँ फिर आंसुओं के प्रवाह को। बस जो दिल की टीस होती है उसको गले तक नहीं पहुचने देती। थोड़ी ही देर में ही रोक लेती हूँ खुद को क्योंकि फिर दिमाग में, यादों में और ज़हन में बार बार दुहराने लगते है वह तुम्हारे आखिरी शब्द - इफ यू वांट मी टू बी हैप्पी दन गो अवे फ्रॉम मी।  वी कान्ट बी टू-गेदर ... इफ यू वांट मी टू बी हैप्पी दन गो अवे फ्रॉम मी।  वी कान्ट बी टू-गेदर... इफ यू वांट मी टू बी हैप्पी दन गो अवे फ्रॉम मी।  वी कान्ट बी टू-गेदर .........

लेकिन आज, आज नहीं रोक पा रही हूँ वह आंसुओं का प्रवाह और न ही गले को फाड़  कर बहार निकलती हुई वह टीस। 

Thursday, January 07, 2016


तुमने मेरे साथ नहीं सोची कभी ज़िन्दगी।
पर मैंने तुम्हारे बिना नहीं ..
तो आज जो टीस सी उठी दिल में, इतना दर्द तो लाज़मी है ना ?
इतना सा , बस इतना सा दर्द तो मय्यसर है न मुझे?
या यह थोड़ी सी जो खलिश है , मैं उसकी भी हक़दार नहीं?

नहीं हूँ मैं कोई ख़ुदा की खुद को हमेशा संभाले रहूँ
बहते हैं कभी कभी यह आँसू जो तुमको सोचती हूँ
जो कभी सोचा था की मेरा मुस्तक़बिल होगा
वो आज किसी और का देखती हूँ तो उदास होती हूँ
यूँही, बस यूँही थोड़ा स ग़म तो मय्यसर है ना मुझे?
या यह थोड़ी सी जो खलिश है , मैं उसकी भी हक़दार नहीं?


सालों से सीने में दफ़्न एक तूफ़ान सा है
उभरता है कभी वो भी अपना किनारा तोड़ने को
ज़ज़्ब कर लेती हूँ फिर से सीने में उसे
कभी तो , बस कभी तो बह जाने दूँ उसे यह तो मय्यसर है न मुझे?
या यह थोड़ी सी जो खलिश है , मैं उसकी भी हक़दार नहीं?

Sunday, September 20, 2015

You!


Is it that anyone’s breath has the same meaning to everyone and anyone?
Or is it special for the soul mates, who are destined to be…
For I ask this question to myself,
Every time the fragrance of your breath intoxicates me.

Why is it then, that all the forbidden desires that lounge my heart,
And all the wild fantasies my mind wanders about
I envision you in all of those, and no other
As if they mean only when you are there, or neither.

Why is it that I feel I am solely for you,
Even though I fear you will never be for me, and I feel so blue.

These are the thoughts that plunder my peace,
Is there anyone who can answer me these?

Tuesday, March 31, 2015

sawaloon ki dehleez

2014:
एक पुराने कैसेट का फोटो भेज कर :

मैं : यह कैसेट याद है?



वो: हाँ ...
(लम्बी ख़ामोशी के बाद )
वो : मत देखा करो यह सब पुरानी चीज़ें

मैं : ठीक है

(फिर एक monologue चल पड़ा मेरे अंदर। शायद अपने उद्गारों को खुद ही सुनने और समझने के लिए)

Sorry, भूल जाती हूँ की तुम वह शक़्स नहीं हो । वह तो कोई और था । १० साल पहले वाला। और मेरा दिल? मेरा दिल आज भी वहीँ है १० साल पहले, वहीँ कहीं रुक के भटक रहा है। उस शक़्स को ढूंढ़ रहा है जो खो गया है। तुम वो नहीं हो, तुम तो सिर्फ उस का एक अक्स हो, बस। सिर्फ शकल-ओ-बदन एक सा है, बाकि कुछ भी एक सा नहीं । न सोच , न इरादे, न जज़्बात, न ख़्वाहिशें और न ही वैसी शिद्दत। वो सब कुछ तो खो गया ।

पर क्या करूँ ? अक्स एक सा है न इसलिए भूल जाती हूँ और तुम मेँ उसे तलाश करने लगती हूँ। और जब वो नहीं मिलता तो हज़ार सवालों की देहलीज़ पे खुद को खड़ा पाती हूँ। 

पता नहीं वो कहाँ और कब खोया ? शायद तब, जब मेरी ग़ैर-मौज़ूदगी में उसने एक दूसरा सहारा खोज लिया. शायद तब, जब किसी और का दामन थाम लिया।  पर फिर एक और सवाल ... की मैं ग़ैर- मौज़ूद थी ही कब? हमेशा से यहीं थी, तुम्हारे साथ, तुम्हारे पास, तुम्हारे लिए । खुद को पूरा सौंपा था तुम्हें। 

क्यूँ ? आख़िर क्यूँ ? क्यों हुआ यह सब? जानती हूँ ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती, मेरी भी गलतियाँ रही होंगी, मेरी भी कुछ बातें ऐसी होंगी जिसने तुमको मुझसे दूर किया
।  लेकिन क्या थीं वो सारी वजहें ? और भी ऐसे कई सवाल मुंह तकते हैं मेरा। नहीं मिलेंगे इन सवालों के जवाब मुझे कभी, शायद इसीलिए अभी भी १० सल पहले की यादों में, १० साल पहले की ज़िन्दगी में खुद को बार बार घूमती हुई पाती हूँ.

तुमसे ज़िरह नहीं करनी मुझे , और  ना  ही  जवाबतलबी। सिर्फ  ये जानना चाहती हूँ की अगर मैं आज भी तुम्हारी सब कुछ हूँ, तुम्हारी जान हूँ, तो तुम्हारे बाकी के जज़्बात कहाँ गए?

अब भी खड़ी हूँ यूँही यहाँ पे , ऐसे ही हज़ार सवालों की दहलीज़ …

Wednesday, October 08, 2014

Bismillah

Bismillah !!
Ek Nayi Shuruaat
Tumhare liye bhi...
Mere liye bhi...

Bismillah !!
Ek nayi zindagi
Tumhari…. kisi ke saath

Aur Meri ….tumhare bina